भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हरिया उठता है / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>भूल-से ही सही सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की फूट आए जो कोंपल कहीं को…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:47, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
भूल-से ही सही
सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की
फूट आए जो कोंपल कहीं कोई
ठूंठ हो रहा
ठूंठ फिर ठूंठ नहीं रह जाता
हरिया उठता है मन-ही-मन
हरियाता है जैसे
भरा-पूरा गाछ कोई !