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"हरिया उठता है / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>भूल-से ही सही सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की फूट आए जो कोंपल कहीं को…)
 
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14:47, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

भूल-से ही सही
सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की
फूट आए जो कोंपल कहीं कोई

ठूंठ हो रहा
ठूंठ फिर ठूंठ नहीं रह जाता
हरिया उठता है मन-ही-मन
हरियाता है जैसे
भरा-पूरा गाछ कोई !