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"ठूंठ जो ठहरा / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
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14:48, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
हर आती रूत लाई
अपने संग रंग नए
पर यह जस-का-तस रहा
आजू-बाजू कहीं
कोंपलें फूटीं
कलियां चटकी
फूल खिले
यहां –वहां
भौंरे गुनगुनाए
हर तरफ
हवाएं बहकी
पर
टस-से-मस न हुआ
यह मेरा मन
ठूंठ जो ठहरा !