भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ठूंठ जो ठहरा / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>हर आती रूत लाई अपने संग रंग नए पर यह जस-का-तस रहा आजू-बाजू कहीं को…)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:48, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

हर आती रूत लाई
अपने संग रंग नए
पर यह जस-का-तस रहा
आजू-बाजू कहीं
कोंपलें फूटीं
कलियां चटकी
फूल खिले

यहां –वहां
भौंरे गुनगुनाए
हर तरफ
हवाएं बहकी

पर
टस-से-मस न हुआ
      यह मेरा मन
ठूंठ जो ठहरा !