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"रूग्‍ण पिताजी / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

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12:16, 5 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


रात नहीं कटती ? लम्‍बी यह बेहद लम्‍बी लगती है ?
इसी रात में दस-दस बारी मरना है जीना है
इसी रात में खोना-पाना-सोना-सीना है
जख्‍म इसी में फिर-फिर कितने खुलते जाने हैं
कभी मिले थे औचक जो सुख वे भी तो पाने हैं

पिता डरें मत, डरें नहीं, वरना मैं भी डर जाऊंगा
तीन दवाइयां, दो इंजेक्‍शन अभी मुझे लाने है
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