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"क्यों कर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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क्योंकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़<br> | क्योंकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़<br> |
20:13, 27 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
क्योंकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़
दिल से निकला प न निकला दिल से
है तेरे तीर का पैकान अज़ीज़
ताब लाये ही बनेगी 'ग़लिब'
बाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़