भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: रचनाकार: ग़ालिब Category:कविताएँ Category:गज़ल Category:ग़ालिब ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* म...) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | [[Category: | + | |रचनाकार=ग़ालिब |
− | + | }} | |
− | + | [[Category:ग़ज़ल]] | |
− | + | ||
मज़े जहाँ के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं <br> | मज़े जहाँ के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं <br> |
20:13, 27 जनवरी 2008 का अवतरण
मज़े जहाँ के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
सिवाय ख़ून-ए-जिगर, सो जिगर में ख़ाक नहीं
मगर ग़ुबार हुए पर हव उड़ा ले जाये
वगर्ना ताब-ओ-तवाँ बाल-ओ-पर में ख़ाक नहीं
ये किस बहीश्तशमाइल की आमद-आमद है
के ग़ैर जल्वा-ए-गुल राहगुज़र में ख़ाक नहीं
भला उसे न सही, कुछ मुझी को रहम आता
असर मेरे नफ़स-ए-बेअसर में ख़ाक नहीं
ख़याल-ए-जल्वा-ए-गुल से ख़राब है मैकश
शराबख़ाने के दीवर-ओ-दर में ख़ाक नहीं
हुआ हूँ इश्क़ की ग़ारतगरी से शर्मिंदा
सिवाय हसरत-ए-तामीर घर में ख़ाक नहीं
हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल्लगी के "असद"
खुला कि फ़ायेदा अर्ज़-ए-हुनर में ख़ाक नहीं