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"एक माँ की कविताएँ-3 / नरेन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर
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इन दिनों मैं | इन दिनों मैं |
02:51, 10 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
इन दिनों मैं
हर रोज़
सुनाता हूं उसे अपने
बचपन की कहानियाँ
इन दिनों
उसकी आँखों में
एक नवजात चेहरा हँसता रहता है
इन दिनों
आँगन में खड़ी
आम के पेड़ को देखती रहती है वह
देखती रहती है मेरी तरफ़
इन दिनों वह
जैसे
मेरे बचपन के बहाने
अपने बच्चे का
बचपन जी रही है