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"भ्रम पालता है आदमी / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

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<poem>सर्योदय से सूर्यास्त तक
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सर्योदय से सूर्यास्त तक
 
अपने बदन पर
 
अपने बदन पर
 
कपड़ों का भार
 
कपड़ों का भार

02:17, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

सर्योदय से सूर्यास्त तक
अपने बदन पर
कपड़ों का भार
ढोते-ढोते
थक जाता है आदमी।
सांझ ढले
उनके लिए
दीवारों पर
लम्बाई में उभरी
खूंटियां तलाशता है आदमी
मगर
दुनिया का भार
अपने कंधों पर
ढो लेने का
दिन भर
भ्रम पालता है आदमी।