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<poem>आकाश में
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आकाश में
 
गिद्धों की तरह तिर रहे हैं
 
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हवाई जहाज-हैलीकॉप्टर
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आग में ओटी हुई बाटी
 
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उथलना भूल जाती हैं
 
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चूल्हे के पास बैठी हुई औरतें
 
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धमाके......धमाके.......धमाके
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धमाके.... धमाके.... धमाके...
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अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
 
अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
 
अब तो
 
अब तो

09:11, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

आकाश में
गिद्धों की तरह तिर रहे हैं
हवाई जहाज़-हैलीकॉप्टर

आग में ओटी हुई बाटी
उथलना भूल जाती हैं
चूल्हे के पास बैठी हुई औरतें

धमाके.... धमाके.... धमाके...

अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
अब तो
सब कुछ आग में ही है !

अनुवाद : मोहन आलोक