भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अख़बार / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} <poem> सारा दिन मैं खू…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:53, 22 जुलाई 2010 का अवतरण
सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के कला पड़ जाता है खून
पपड़ी सी जम जाती है
खुरच खुरच के नाखूनों से चमड़ी छिलने लगती है
नाक में खून की कच्ची बू
और कपड़ों पर कुछ काले काले चकते से रह जाते हैं
रोज़ सुबह अखबार मेरे घर
खून से लथपथ आता है