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19:53, 22 जुलाई 2010 का अवतरण

सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के कला पड़ जाता है खून
पपड़ी सी जम जाती है
खुरच खुरच के नाखूनों से चमड़ी छिलने लगती है
नाक में खून की कच्ची बू
और कपड़ों पर कुछ काले काले चकते से रह जाते हैं

रोज़ सुबह अखबार मेरे घर
खून से लथपथ आता है