भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निर्विकल्प / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण अग्रवाल |संग्रह=उतना वह सूरज है / भारत …)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:57, 28 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

इसने नारे की हवाई छोड़ी
उसने भाषण की चर्खी
तीसरे ने योजना की महताब
चौथे ने सेमिनार का अनार
पाँचवे ने बहस के पटाखों की लड़ी
छठे ने प्रदर्शन की फुलझड़ी
-छन भर उजाले से आँखें चौंधिया गईं
पर फिर
खेल ख़त्म होते ही
और भी अदबदा कर अँधेरे ने घेर लिया ।

भाइयो,
सहधर्मियो !
सुनो, तुम्हें मन की एक बात बतलाता हूँ :
सूरज का कोई सब्स्टीट्यूट नहीं है
यहाँ तक कि चाँद भी
जितना उजाला है
उतना वह सूरज है !

रचनाकाल : 20 नवंबर 1966