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"ऐसे तट हैं - क्यों इन्करें / हरीश भादानी" के अवतरणों में अंतर
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क्यों इन्कारें | क्यों इन्कारें | ||
किरणें खीज | किरणें खीज |
01:19, 7 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
ऐसे तट हैं --
क्यों इन्कारें
किरणें खीज
खुरच जाती हैं
माटी पर दो - चार दरारें
ऐसे तट हैं --
क्यों इन्कारें
भरी - भरी - सी
सांस - झील पर
तन-मन प्यासे पंख पसारें
ऐसे तट हैं --
क्यों इन्कारें
परदेशी
बुद बुदे देखने
कंकर फैंकें, थकन उतारें
ऐसे तट हैं --
क्यों इन्कारें