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03:18, 23 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
बाँध लिए अँजुरी में-
जूही के फूल ।
मधुर गंध,
मन की हर एक गली महक गई,
सुखद परस,
रग-रग में चिनगी-सी दहक गई
रोम-रोम उग आए-
साधों के शूल ।
जोन्हा का जादू
जिन पंखुरियों था फैला,
छू गंदे हाथों-
मैंने उन्हें किया मैला,
हाथ काट लो-
मेरे...
सज़ा है क़बूल ।
आह !
हो गई मुझसे एक बड़ी भूल ।
अँजुरी में बाँध लिए जूही के फूल ।