भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक लहर फैली अनन्त की / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: सीधी है भाषा बसन्त की कभी आंख ने समझी कभी कान ने पायी कभी रोम-रोम से प्र...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=त्रिलोचन
 +
}}
 +
 +
 
सीधी है भाषा बसन्त की
 
सीधी है भाषा बसन्त की
  
पंक्ति 24: पंक्ति 29:
  
  
('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से )
+
''('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से)''

15:41, 21 मई 2007 का अवतरण


सीधी है भाषा बसन्त की


कभी आंख ने समझी

कभी कान ने पायी

कभी रोम-रोम से

प्राणों में भर आयी

और है कहानी दिगन्त की


नीले आकाश में

नयी ज्योति छा गयी

कब से प्रतीक्षा थी

वही बात आ गयी

एक लहर फैली अनन्त की ।


('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से)