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"कौन कान सुनेगा / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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15:43, 21 मई 2007 का अवतरण

रचनाकार: त्रिलोचन

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अपनी कैसे कहूं

यहां कौन कान सुनेगा

आगे एक है पहाड़

फिर दूसरा पहाड़

फिर तीसरा पहाड़

इन्हें घेरे और बांधे हुए

हरे भरे झाड़


इनको छोड़ और कौन

मेरी तान सुनेगा


आगे एक है मनुष्य

फिर दूसरा मनुष्य

फिर तीसरा मनुष्य

इन्हें घेरे और बांधे हुए

दुनिया के मनुष्य


इनको छोड़ मेरा कौन

स्वाभिमान सुनेगा ।

('ताप के ताये हुए दिन' नामक संग्रह से)