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"वक़्त का सिलसिला यों ही चलता रहा / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'" के अवतरणों में अंतर

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वक्त का सिलसिला यों ही चलता रहा
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वक़्त का सिलसिला यों ही चलता रहा
 
और करता रहा बागियों  को सलाम !
 
और करता रहा बागियों  को सलाम !
  
यों  गुजरता रहा रात-दिन जुल्म से  
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यों  गुज़रता रहा रात-दिन ज़ुल्म से  
हर बगावत से पाता नया इक मुकाम।
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हर बग़ावत से पाता नया इक मुकाम।
  
अपने–अपने समय के मेरे बागियो
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अपने–अपने समय के मेरे बाग़ियो
 
इस समय का तुम्हारे समय को सलाम !
 
इस समय का तुम्हारे समय को सलाम !
  
हर बगावत ने जो भी नया कुछ रचा-
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हर बग़ावत ने जो भी नया कुछ रचा-
गीत, नग्मा, रुबाई, गजल को सलाम !
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गीत, नग्मा, रुबाई, ग़ज़ल को सलाम !
  
सिलसिलों को सलाम, मंजिलों को सलाम
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सिलसिलों को सलाम, मंज़िलों को सलाम
 
आने वाले तेरे-मेरे कल को सलाम !
 
आने वाले तेरे-मेरे कल को सलाम !
  
 
:::साल का एहतेराम
 
:::साल का एहतेराम
 
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15:13, 2 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

वक़्त का सिलसिला यों ही चलता रहा
और करता रहा बागियों को सलाम !

यों गुज़रता रहा रात-दिन ज़ुल्म से
हर बग़ावत से पाता नया इक मुकाम।

अपने–अपने समय के मेरे बाग़ियो
इस समय का तुम्हारे समय को सलाम !

हर बग़ावत ने जो भी नया कुछ रचा-
गीत, नग्मा, रुबाई, ग़ज़ल को सलाम !

सिलसिलों को सलाम, मंज़िलों को सलाम
आने वाले तेरे-मेरे कल को सलाम !

साल का एहतेराम