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"दीवार / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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17:33, 4 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
तुम
कान रखते हो
मगर
कान में दीवार नहीं रखते
इसी लिए
अघटित भी
घटित की तरह सुनते हो
और
बना डालते हो
बात का बतंगड़।
तुम कहते हो
दीवारों के भी कान होते है
हां,
दीवारों के भी होते है कान
इसी लिए वे
बहुत कुछ ही नहीं
सब कुछ ही सुनती हैं
कि, तुम्हारी तरह
दीवारों के मुख नही होता
यदि दीवारें मुख रखती
तो तुम से पुछती
कि, तुम ने अपने सुख के लिए
उनके कंधों पर
यह भारी भरकम छत
किस लिए रख दी?