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09:55, 5 सितम्बर 2010 का अवतरण
सतह के समर्थक समझदार निकले
जो गहरे में उतरे गुनहगार निकले
बड़ी शान-ओ-शौकत से अख़बार निकले
कि आधे-अधूरे समाचार निकले
ये जम्हूरियत के जमूरे बड़े ही
कलाकार निकले, मज़ेदार निकले
बिकाऊ बिकाऊ, नहीं कुछ टिकाऊ
मदरसे औ' मन्दिर भी बाज़ार निकले
किसी एक विरान सी रहगुज़र पर
फटे हाल मुफलिस वफादार निकले
गुलाबों कि दुनिया बसाने की क्वाहिश
लिए दिल में जंगल से हर बार निकले