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"उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है
 
यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है
  
जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सितागा कब से
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जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सिताज़ा कब से
 
एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,  
 
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अब तो दरिया में तलातुम न सकूँ है, यूँ है
 
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नासेहा तुझ को खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
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नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
 
रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है
 
रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है
  
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते है
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शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'
तो उसके शहर मे कुछ दिन ठहर के देखते है 
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ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है
 
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सुना है रक्त है उसको खराब हालो से
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तो अपने आप को बर्बाद करके देखते है 
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सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
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तो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते है
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सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
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तो हम भी मोईज़े अपने हुनर देखते है
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सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते है
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ये बात है तो चलो बात करके देखते है
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सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती है
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सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते है
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सुना है उसकी स्याह चश्मगे कयामत है 
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सुना है उसको हिरण गश भर के देखते है
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सुना है आईना तमसान है ज़मीं उसकी
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जो सादा दिल है उसे बन सँवर के देखते है
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सुना है उसके लबों से गुलाब जलते है
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तो हम बहार पे इल्ज़ाम कर के देखते है
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सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
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कि फूल अपनी कवाए कतर के देखते है
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सुना है उसके शबिस्ताँ से मुत्त्सिल है बहिश
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वकी उधर के भी जलवे इधर के देखते है
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रूके तो गर्दिशे उसका तवाम करती है
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चले तो उसको ज़माने ठरके देखते है
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कहानियाँ ही सही, सब मुबालहे ही सही
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अगर वो क्वाब है तामीर कर के देखते है
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अब उसके शहर मे ठहरे याँ कूच कर जाए
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'फराज़' आओ कि सितारे सबर के देखते है
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19:37, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण

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उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है
यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है

जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सिताज़ा कब से
एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,

तुमने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफा की तस्वीर
चले हर खार पे कि कतरा-ए-खूँ है, यूँ है

अब तुम आए हो मेरी जान तमाशा करने
अब तो दरिया में तलातुम न सकूँ है, यूँ है

नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है

शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'
ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है