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"कहनी न थी जो बात वो / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: कहनी न थी बात जो कहना पड़ा मुझे तेरे बगैर, कैसे कहूँ , खुश बहुत रह…)
 
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20:35, 9 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

कहनी न थी बात जो

कहना पड़ा मुझे

तेरे बगैर, कैसे कहूँ ,

खुश बहुत रहना पड़ा मुझे।

इन्सान जो इन्सान है

मजबूर है बहुत

इंसानियत का दर्द भी

सहना पड़ा मुझे।

तेरे बगैर कैसे कहूँ

खुश बहुत रहना पड़ा मुझे।

करते हैं लोग बाग

यूँ बदनाम जब तुझे

होगी कोई गलती मेरी

कहना पड़ा मुझे ।

तेरे बगैर........

तुम थे कि हो मासूम

मुझको पता है ये

लेकिन से क्यों कहूँ

सहना पड़ा मुझे।

तेरे बगैर जिन्दगी होती है

जानकर

आंसू के रास्ते ही

चुप बहना पड़ा मुझे......... ।