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"वह क्षण / गोबिन्द प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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12:44, 10 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण


जाते हुए
मैं देखता रहा
उसकी आँखों में
और वह सोचती रही
कि उन हाथों में ऐसा क्या है
-यूँ खिलते रहते हैं सपने में
जागरण की तरह!