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"जां सुलगती है--ग़ज़ल / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | वात महंगे हुए, आह भी थामे रखिए |
16:20, 17 सितम्बर 2010 का अवतरण
जां सुलगता है--ग़ज़ल
रात भर शमां से गुल हटाए रखिए
वहमे-सुबह का ख्याल बनाए रखिए
जां सुलगता है लफ़्ज़ों की कामयाबी पर
लफ्ज़ हवाओं की तरह बहाए रखिए
खुदकुशी से पहले आग बार-बार परखिए
हर धुएं का सैलाब आग नहीं, वहम भगाए रखिए
यार, पैसे ना उड़ा इन फ़िज़ूल साँसों पर
वात महंगे हुए, आह भी थामे रखिए