भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काँच निर्मित घरों के / शेरजंग गर्ग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरजंग गर्ग |संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरज…)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरजंग गर्ग‎
 
|संग्रह=क्या हो गया कबीरों को / शेरजंग गर्ग‎
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
काँच निर्मित घरों के क्या कहने!
 
काँच निर्मित घरों के क्या कहने!
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
उँचे-उँचे सरों के क्या कहने!
 
उँचे-उँचे सरों के क्या कहने!
  
जिनके होंठो पे सिर्फ अफ़वाहें,
+
जिनके होंठों पे सिर्फ अफ़वाहें,
 
ऐसे हमलावरों के क्या कहने!
 
ऐसे हमलावरों के क्या कहने!
  

17:33, 18 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

काँच निर्मित घरों के क्या कहने!
भुरभुरे पत्थरों के क्या कहने!

झुक गए तानने के मौके पर
उँचे-उँचे सरों के क्या कहने!

जिनके होंठों पे सिर्फ अफ़वाहें,
ऐसे हमलावरों के क्या कहने!

रहज़नी में कमाल हासिल है
रहनुमा रहबरों के क्या कहने!

आदमी है गुलाम सिक्को का
उठती-गिरती दरों के क्या कहने!

बेचकर मुल्क मुस्कुराते हैं,
क़ौम के मसखरों के क्या कहने!