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"खुश हुए मार कर ज़मीरों को / शेरजंग गर्ग" के अवतरणों में अंतर
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खुश हुए मार कर ज़मीरों को। | खुश हुए मार कर ज़मीरों को। | ||
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रास्ते साफ़ हैं, बढ़ो बेख़ोफ़, | रास्ते साफ़ हैं, बढ़ो बेख़ोफ़, | ||
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दिल में नफरत की धूल गर्द जमी | दिल में नफरत की धूल गर्द जमी | ||
− | हम सजाते रहे | + | हम सजाते रहे शरीरों को। |
कृश्न के देश में सुशासन जन, | कृश्न के देश में सुशासन जन, |
17:43, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण
खुश हुए मार कर ज़मीरों को।
फिर चले लूटने फ़क़ीरों को।
आज राँझे भी क़त्ल में शामिल,
शर्म आने लगी है हीरों को।
रास्ते साफ़ हैं, बढ़ो बेख़ोफ़,
कैसे समझाए रहगीरों को!
दिल में नफरत की धूल गर्द जमी
हम सजाते रहे शरीरों को।
कृश्न के देश में सुशासन जन,
कन तलक यों हरेंगे चीरों को?
चलती चक्की को देखकर हँसते,
हाय, क्या हो गया कबीरों को।
लूट नफ़रत, तनातनी, हिंसा,
कब मिटाओगे इन लकीरों को?