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Kavita Kosh से
ओस चाटती प्यासों को तू-
रानी असली पानी दे।
नही, यहाँ पर मेघ न कोई,
नदी न कोई, झील नहीं!
पोखर कोई असील नहीं।
पेट पूजने पानी दे।
प्यासें लगतीं भरी पेट को
रोटी की आसानी दे।
दे न सके पानी, तो प्यासें
कद्दावर मर्दानी दे।
मक्का ज्वार,
बाजरा कंगनी
मन-मन कुटकी, मन-मन कोदो
चोखे बाँट पसेरी दे।
सूखा भूसा सानी दे।
पेट-पीठ के दीन-धरम को-
पड़ी हुई भारी जंगी।
बेमानी को मानी दे।
अपनी पीर परमप्रिय, लेकिन
थोड़ी-सी बेगानी दे।
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