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तारें हो रहे हैं बेपर्द | तारें हो रहे हैं बेपर्द |
10:00, 1 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
तारें हो रहे हैं बेपर्द
झरते हैं पठारों पर सितारों के लिबास
ज़रूर आएंगे तीर्थयात्री
और खोजेंगे
आर्तनाद
कल के बुझे हुए अलाव
अनुवाद : गुलशेर खान शानी