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"उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती / कुमार विश्वास" के अवतरणों में अंतर
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14:13, 29 मई 2007 का अवतरण
रचनाकार: कुमार विश्वास
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उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती
हमको ही खासकर नही मिलती
शायरी को नज़र नही मिलती
मुझको तू ही अगर नही मिलती
रूह मे, दिल में, जिस्म में, दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नही मिलती
लोग कहते हैं रुह बिकती है
मै जहाँ हूँ उधर नही मिलती
कोई दीवाना कहता है (२००७) मे प्रकाशित