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चलनी चालते हैं छोटे-बड़े आयोग।
छेद-छेद से झराझर झरता है
तथाकथित यशस्वियों का भ्रष्टाचार,
आततायियों का अत्याचार।
काँच-काँच के करकते टुकड़ों का
लग गया है भारी-भरकम अम्बार।
देखता है मेरा देश
दाँत-तले अँगुली दबाए--
आश्वर्य-चकित-आँखें उघारे;
दर्द-दर्द से कराहता-खाँसता;
बर्फ की टोपी सिर पर लगाए,
पाँव में पहने सागर का जूता;
पेट पीठ में
सरकार के पोस्टर चिपकाए।
रचनाकाल: २०-०२-१९७८