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सिर पर सवार
चढ़े बैठे हैं
गुम्बद
(महान्-
महत्वाकांक्षी-
यशस्थापित-
आत्माधिकारी);
जमीन पर जड़े-
समर्पित खड़े-
देव मन्दिरों पर;
लोकापवाद से विरक्त,
काल का भाल
चमकाए,
जीवित यथार्थ से दूर,
पुरातन, प्रवीन,
पुष्ट और
प्रसन्न हुए।
रचनाकाल: ०९-०३-१९७९