भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काल-कवलित हुए यहीं / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=मार प्यार की थापें / के…)
 
छो ("काल-कवलित हुए यहीं / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

22:23, 18 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

काल-कवलित हुए यहीं
अहिंसावतारी
महाबीर तीर्थंकर
आम आदमी के समान।

अब भी
हवा में व्याप्त
हुंकारते-हुआते हैं यहाँ
आदमियों को डराते
मौत के दूत।

अकेला सूर्य
शासन करता है,
बान और बरछी-मारता
यमदूतों को-
‘जल मंदिर’ के जलाशय में,
मछलियाँ तैरती हैं जहाँ
कोइयों के कुल में,
कुलबुलाती।

रचनाकाल: २८-०२-१९८०



पावापुरी में पहुँचकर