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22:24, 18 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
मैं
समय की
धार में
धँसकर खड़ा हूँ।
मैं
छपाछप
छापते
छल से
लड़ा हूँ
क्योंकि मैं
सत् से सधा हूँ-
जी रहा हूँ;
टूटने वाला नहीं
कच्चा घड़ा हूँ।
रचनाकाल: ०३-०९-१९८०