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"आखिर जुबां के बात कलम में समा गइल / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर

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22:22, 28 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण


आखिर जुबां के बात कलम में समा गइल
गजलो में हमरा जिन्दगी के रंग आ गइल

बरिसन से जे दबा के हिया में रहे रखल
अचके में आज बात ऊ कइसे कहा गइल

उनका से कवनो जान भा पहचान ना रहे
भइले मगर ऊ दूर त मन छटपटा गइल

एह जिन्दगी के राह के होई के हमसफर
सोचत में रात बात ई मन कसमसा गइल

अबले ना जिन्दगी से मुलाकात हो सकल
ऊ साथे-साथ जब कि बहुत दूर आ गइल

कइसे भुला सकी कबो ऊ मद भरल अदा
जवना निगाहे-नूर प 'भावुक' लुटा गइल