भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बात पर बात जब मन परल होई / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> बात पर बात जब मन परल ह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:23, 28 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
बात पर बात जब मन परल होई
लोर आँखिन से कतना झरल होई
दोष आँखे प काहे मढ़ाइल हऽ
कुछ कसर उम्र के भी रहल होई
लोग लूटे में लागल अनेरे बा
जब ऊ जाई त मुट्ठी खुलल होई
प्रान जाई मगर ना वचन जाई
कवनो जुग के चलन ई रहल होई
रात में के बा सिसकत सुनहटा में
जाल में कवनो मछरी फँसल होई
माथ पर साया बन के जे बदरी बा
घाम में खुद ऊ केतना जरल होई
आज कीचड़ में भलहीं सड़त बाटे
काल्ह उहे नू खिल के कमल होई
जब बसा लेलीं 'भावुक' के हियरा में
साथ उनके जिअल भा मुअल होई