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+ | वे जिसके बारे में पढ़ते हैं- | ||
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+ | बारी-बारी से अशोक, बुद्ध, अकबर। | ||
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+ | मुंह खोल सोए हुए बूढ़े | ||
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+ | पांडुलिपियों से झड़ी | ||
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+ | खुद ही हो जाते हैं जीर्ण-शीर्ण भूजर्पत्र! | ||
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+ | कभी-कभी हवा छेड़ती है इन्हें, | ||
+ | गौरैया उड़ती-फुड़ती | ||
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+ | नन्हें पंजों से हस्ताक्षर। | ||
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+ | क्या कोई राहुल सांस्कृतायन आएगा | ||
+ | और जिह्वार्ग किए इन्हें लिए जाएगा | ||
+ | तिब्बत की सीमा के पार? | ||
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22:32, 28 अक्टूबर 2010 का अवतरण
गमीर् गजब है!
चैन से जरा ऊंघ पाने की
इससे ज्यादा सुरिक्षत, ठंडी, शांत जगह
धरती पर दूसरी नहीं शायद।
गैलिस की पतलून,
ढीले पैतावे पहने
रोज आते हैं जो
नियत समय पर यहां ऊंघने
वे वृद्ध गोरियो, किंग लियर,
भीष्म पितामह और विदुर वगैरह अपने साग-वाग
लिए-दिए आते हैं
छोटे टिफन में।
टायलेट में जाकर मांजते हैं देर तलक
अपना टिफन बाक्स खाने के बाद।
बहुत देर में चुनते हैं अपने-लायक
मोटे हर्फों वाली पतली किताब,
उत्साह से पढ़ते है पृष्ठ दो-चार
देखते हैं पढ़कर
ठीक बैठा कि नहीं बैठा
चश्मे का नंबर।
वे जिसके बारे में पढ़ते हैं-
वो ही हो जाते हैं अक्सर-
बारी-बारी से अशोक, बुद्ध, अकबर।
मधुबाला, नूतन की चाल-ढाल,
पृथ्वी कपूर और उनकी औलादों के तेवर
ढूंढा करते हैं वे इधर-उधर
और फिर थककर सो जाते हैं कुर्सी पर।
मुंह खोल सोए हुए बूढ़े
दुनिया की प्राचीनतम
पांडुलिपियों से झड़ी
धूल फांकते-फांकते
खुद ही हो जाते हैं जीर्ण-शीर्ण भूजर्पत्र!
कभी-कभी हवा छेड़ती है इन्हें,
गौरैया उड़ती-फुड़ती
इन पर कर जाती है
नन्हें पंजों से हस्ताक्षर।
क्या कोई राहुल सांस्कृतायन आएगा
और जिह्वार्ग किए इन्हें लिए जाएगा
तिब्बत की सीमा के पार?