भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जुल्म के तूफान के रउरे कहीं, कबले सहीं / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> जुल्म के तूफान के रउर…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:50, 29 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
KKGlobal}}
जुल्म के तूफान के रउरे कहीं, कबले सहीं
खुद ना काहें बन के तूफानी हवा उल्टे बहीं
भेद मन के मन में राखब कब ले अइसे जाँत के
आज खुल के बात कुछ रउरो कहीं, हमहूँ कहीं
का हरज बाटे कि ख्वाबे के हकीकत मान के
प्यार के दरियाव में कुछ देर खातिर हम दहीं
घर बसल अलगे-अलग, बाकिर का ना ई हो सके
रउरा दिल में हम रहीं आ हमरा में रउरा रहीं
छल-कपट आ पाप से जेकर भरल बा जिन्दगी
कुछ हुनर सीखे बदे तऽ पाँव हम ओकरो गहीं
जिन्दगी के साँच से महरूम बाटे जे गजल
ओह गजल के हम भला 'भावुक' गजल कइसे कहीं