भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लाख रोकीं निगाह चल जाता / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} Category:ग़ज़ल <poem> लाख रोकीं निगाह चल जा…)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:21, 29 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

KKGlobal}}


लाख रोकीं निगाह चल जाता
का करीं मन मचल-मचल जाता

राह में बिछलहर बा, काई बा
गोड़ रह-रह फिसल-फिसल जाता

रूप के आँच मन के लागत हीं
साँस लहकत बा, तन पिघल जाता

के तरे गीत गाईं जिनिगी के
हर घड़ी लय बदल-बदल जाता