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"सरिता / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर

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यह लघु सरिता का बहता जल
 
यह लघु सरिता का बहता जल
 
 
कितना शीतल¸ कितना निर्मल¸
 
कितना शीतल¸ कितना निर्मल¸
 
  
 
हिमगिरि के हिम से निकल–निकल¸
 
हिमगिरि के हिम से निकल–निकल¸
 
 
यह विमल दूध–सा हिम का जल¸
 
यह विमल दूध–सा हिम का जल¸
 
 
कर–कर निनाद कल–कल¸ छल–छल
 
कर–कर निनाद कल–कल¸ छल–छल
 
 
बहता आता नीचे पल पल  
 
बहता आता नीचे पल पल  
 
  
 
तन का चंचल मन का विह्वल।
 
तन का चंचल मन का विह्वल।
 
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
  
 
निर्मल जल की यह तेज़ धार
 
निर्मल जल की यह तेज़ धार
 
 
करके कितनी श्रृंखला पार
 
करके कितनी श्रृंखला पार
 
 
बहती रहती है लगातार
 
बहती रहती है लगातार
 
 
गिरती उठती है बार बार
 
गिरती उठती है बार बार
 
  
 
रखता है तन में उतना बल
 
रखता है तन में उतना बल
 
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
  
  
 
एकांत प्रांत निर्जन निर्जन
 
एकांत प्रांत निर्जन निर्जन
 
 
यह वसुधा के हिमगिरि का वन
 
यह वसुधा के हिमगिरि का वन
 
 
रहता मंजुल मुखरित क्षण क्षण
 
रहता मंजुल मुखरित क्षण क्षण
 
 
लगता जैसे नंदन कानन
 
लगता जैसे नंदन कानन
 
  
 
करता है जंगल में मंगल
 
करता है जंगल में मंगल
 
 
यह लघु सरित का बहता जल।।
 
यह लघु सरित का बहता जल।।
 
  
 
ऊँचे शिखरों से उतर–उतर¸
 
ऊँचे शिखरों से उतर–उतर¸
 
 
गिर–गिर गिरि की चट्टानों पर¸
 
गिर–गिर गिरि की चट्टानों पर¸
 
 
कंकड़–कंकड़ पैदल चलकर¸
 
कंकड़–कंकड़ पैदल चलकर¸
 
 
दिन–भर¸ रजनी–भर¸ जीवन–भर¸
 
दिन–भर¸ रजनी–भर¸ जीवन–भर¸
 
  
 
धोता वसुधा का अन्तस्तल।
 
धोता वसुधा का अन्तस्तल।
 
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
  
 
मिलता है उसको जब पथ पर
 
मिलता है उसको जब पथ पर
 
 
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर
 
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर
 
 
आकुल आतुर दुख से कातर
 
आकुल आतुर दुख से कातर
 
 
सिर पटक पटक कर रो रो कर
 
सिर पटक पटक कर रो रो कर
 
  
 
करता है कितना कोलाहल
 
करता है कितना कोलाहल
 
 
यह लघु सरित का बहता जल।।
 
यह लघु सरित का बहता जल।।
 
  
 
हिम के पत्थर वे पिघल–पिघल¸
 
हिम के पत्थर वे पिघल–पिघल¸
 
 
बन गये धरा का वारि विमल¸
 
बन गये धरा का वारि विमल¸
 
 
सुख पाता जिससे पथिक विकल¸
 
सुख पाता जिससे पथिक विकल¸
 
 
पी–पीकर अंजलि भर मृदु जल¸
 
पी–पीकर अंजलि भर मृदु जल¸
 
  
 
नित जल कर भी कितना शीतल।
 
नित जल कर भी कितना शीतल।
 
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
  
 
कितना कोमल¸ कितना वत्सल¸
 
कितना कोमल¸ कितना वत्सल¸
 
 
रे! जननी का वह अन्तस्तल¸
 
रे! जननी का वह अन्तस्तल¸
 
 
जिसका यह शीतल करूणा जल¸
 
जिसका यह शीतल करूणा जल¸
 
 
बहता रहता युग–युग अविरल¸
 
बहता रहता युग–युग अविरल¸
 
  
 
गंगा¸ यमुना¸ सरयू निर्मल
 
गंगा¸ यमुना¸ सरयू निर्मल
 
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
 
यह लघु सरिता का बहता जल।।
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22:09, 29 अक्टूबर 2010 का अवतरण

यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल¸ कितना निर्मल¸

हिमगिरि के हिम से निकल–निकल¸
यह विमल दूध–सा हिम का जल¸
कर–कर निनाद कल–कल¸ छल–छल
बहता आता नीचे पल पल

तन का चंचल मन का विह्वल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।

निर्मल जल की यह तेज़ धार
करके कितनी श्रृंखला पार
बहती रहती है लगातार
गिरती उठती है बार बार

रखता है तन में उतना बल
यह लघु सरिता का बहता जल।।


एकांत प्रांत निर्जन निर्जन
यह वसुधा के हिमगिरि का वन
रहता मंजुल मुखरित क्षण क्षण
लगता जैसे नंदन कानन

करता है जंगल में मंगल
यह लघु सरित का बहता जल।।

ऊँचे शिखरों से उतर–उतर¸
गिर–गिर गिरि की चट्टानों पर¸
कंकड़–कंकड़ पैदल चलकर¸
दिन–भर¸ रजनी–भर¸ जीवन–भर¸

धोता वसुधा का अन्तस्तल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।

मिलता है उसको जब पथ पर
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर
आकुल आतुर दुख से कातर
सिर पटक पटक कर रो रो कर

करता है कितना कोलाहल
यह लघु सरित का बहता जल।।

हिम के पत्थर वे पिघल–पिघल¸
बन गये धरा का वारि विमल¸
सुख पाता जिससे पथिक विकल¸
पी–पीकर अंजलि भर मृदु जल¸

नित जल कर भी कितना शीतल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।

कितना कोमल¸ कितना वत्सल¸
रे! जननी का वह अन्तस्तल¸
जिसका यह शीतल करूणा जल¸
बहता रहता युग–युग अविरल¸

गंगा¸ यमुना¸ सरयू निर्मल
यह लघु सरिता का बहता जल।।