भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आ बैठे बातें करें / रामस्वरूप किसान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>आ बैठे बातें करें आ बैठे बातें करें एक दूजे को देखें कितने वर्ष …)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>आ बैठे बातें करें
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रामस्वरूप किसान
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>आ बैठे बातें करें
 
आ बैठे बातें करें
 
आ बैठे बातें करें
 
एक दूजे को देखें
 
एक दूजे को देखें
पंक्ति 20: पंक्ति 27:
 
क्षमा करना
 
क्षमा करना
 
अवकाश ही नहीं मिला
 
अवकाश ही नहीं मिला
ये दांत कब टूट गए तुम्हारे ?
+
ये दाँत कब टूट गए तुम्हारे ?
 
और ये सफ़ेद बाल ?
 
और ये सफ़ेद बाल ?
आ बैठ, ग़ौर से देखूं तुझे
+
आ बैठ, ग़ौर से देखूँ तुझे
 
कहीं इसी दौड़-भाग में
 
कहीं इसी दौड़-भाग में
 
यह ज़िंदगी भाग न जाए ।
 
यह ज़िंदगी भाग न जाए ।

01:08, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

आ बैठे बातें करें
आ बैठे बातें करें
एक दूजे को देखें

कितने वर्ष बीत गए
साथ-साथ रहते हुए,
कितने क़रीब-क़रीब रहे हम
किंतु देख नहीं सके-एक दूजे को

झूठ नहीं कहता
मैं तो नहीं देख सका
तुम्हारी तुम जानो ।

भोगा अवश्य है
तुम्हारा अंग-अंग
किंतु देख नहीं पाया
ठुड्डी का तिल / जिसका रंग
मेरी अनभिज्ञता के अंधकार में जा मिला

क्षमा करना
अवकाश ही नहीं मिला
ये दाँत कब टूट गए तुम्हारे ?
और ये सफ़ेद बाल ?
आ बैठ, ग़ौर से देखूँ तुझे
कहीं इसी दौड़-भाग में
यह ज़िंदगी भाग न जाए ।

अनुवाद : नीरज दइया