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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र' |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>यह कौन-सा शहर है जहां जहाँ मृत्यु
अच्छे-ख़ूबसूरत खिलौनों जैसी
यहांयहाँ-वहां टंगी वहाँ टँगी है
चेहरे पर
देवताओं-दैत्यों के मुखौटे
सर्पों की मानिंद
बिलों में जाते हुए विचार ।
 क्या मैं हो गया हूं हूँ चित्तभ्रष्ट
या फिर सूख गया है यह समुद्र
शांत और लहरों से रहित
इस तट पर
लगे हुए कई शिलालेख
ऊंघ ऊँघ रहे हैं।हैं । 
उसी दरमियान
प्रेमी-प्रेमिका
लटका देता है सूली पर
ईसा मसीह की तरह
 
सच्ची पुकार, झूठा गुनाह
चारों तरफ़ ख़ाकी अजगर
सांस साँस लेते हुए बिखेरते हैं ज़हर ।
सच में यह शहर
ख़ुद ही से जूझता-लड़ता
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