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"फ़क़त शून्य / यादवेंद्र शर्मा 'चंद्र'" के अवतरणों में अंतर
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आखिर क्यों ? | आखिर क्यों ? | ||
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हम पूंजी और मानवता की | हम पूंजी और मानवता की | ||
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चेहरे पर से चेहरे | चेहरे पर से चेहरे | ||
चेहरे पर से चेहरे | चेहरे पर से चेहरे | ||
चेहरे पर से चेहरे | चेहरे पर से चेहरे | ||
− | प्याज़ के छिलकों की तरह उतारते | + | प्याज़ के छिलकों की तरह उतारते जाएँ |
अंतत: वजूद जैसा | अंतत: वजूद जैसा | ||
एक दाना | एक दाना | ||
− | पहचान भी | + | पहचान भी राम नाम सत्य है |
पीछे फ़क़त शून्य । | पीछे फ़क़त शून्य । | ||
'''अनुवाद : नीरज दइया''' | '''अनुवाद : नीरज दइया''' | ||
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20:41, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
हम हो तो गए हैं
सत्यवादी हरीशचंद्र
परंतु
सच कभी नहीं बोलते
यदि अचानक कभी सच
आ भी जाता है जुबान पर
तो हम
कड़वी दवाई की तरह उसे निगल जाते हैं
आखिर क्यों ?
मैं बताता हूँ
हम पूंजी और मानवता की
वर्ण संकर संतानें हैं ।
चेहरे पर से चेहरे
चेहरे पर से चेहरे
चेहरे पर से चेहरे
प्याज़ के छिलकों की तरह उतारते जाएँ
अंतत: वजूद जैसा
एक दाना
पहचान भी राम नाम सत्य है
पीछे फ़क़त शून्य ।
अनुवाद : नीरज दइया