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"दिन अधमरा देखने / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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चुटकुले बिखरे घुँघराले | चुटकुले बिखरे घुँघराले | ||
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गंध पसीने की पथ भर | गंध पसीने की पथ भर | ||
बतियाती घर आई | बतियाती घर आई | ||
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20:31, 5 नवम्बर 2010 का अवतरण
दिन अधमरा देखने
कितनी भीड़ उतर आई
मुश्किल से साँवली सड़क की
देह नज़र आई ।
कल पर काम धकेल आज की
चिन्ता मुक्त हुई
खुली हवाओं ने सँवार दी
तबियत छुइ-मुई
दिन की बुझी शिराओं में
एक और उमर आई ।
फूट पड़े कहकहे,
चुटकुले बिखरे घुँघराले
पाँव, पंख हो गए
थकन की ज़ंजीरों वाले
गंध पसीने की पथ भर
बतियाती घर आई