भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आते ही पहली तारीख़ / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक }} {{KKCatNavgeet}} <poem> आते ही पहली तारीख़ च…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
चूल्हे की गर्मी के वास्ते | चूल्हे की गर्मी के वास्ते | ||
जाना है चार-पाँच मील | जाना है चार-पाँच मील | ||
+ | |||
महँगाई के बुखार में | महँगाई के बुखार में | ||
चीज़ें ही भरमाती हैं | चीज़ें ही भरमाती हैं |
20:51, 5 नवम्बर 2010 का अवतरण
आते ही पहली तारीख़
चीज़ें ही याद आती हैं
कपड़ों के घाव पूरने
लानी है धागे की रील
चूल्हे की गर्मी के वास्ते
जाना है चार-पाँच मील
महँगाई के बुखार में
चीज़ें ही भरमाती हैं
नोटों के कोण काटने
पाँवों ने नाप दी सड़क
चीज़ नज़र की दलील ने
दे मारी धूल में पटक
माथे की बूँद-बूँद को
चीज़ें ही दहलाती हैं