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आते ही पहली तारीख़ / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
आते ही पहली तारीख़
चीज़ें ही याद आती हैं
कपड़ों के घाव पूरने
लानी है धागे की रील
चूल्हे की गर्मी के वास्ते
जाना है चार-पाँच मील
महँगाई के बुखार में
चीज़ें ही भरमाती हैं
नोटों के कोण काटने
पाँवों ने नाप दी सड़क
चीज़ नज़र की दलील ने
दे मारी धूल में पटक
माथे की बूँद-बूँद को
चीज़ें ही दहलाती हैं