भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कब याद में तेरा साथ नहीं / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ }} Category:गज़ल कब याद में तेरा साथ नहीं क...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | ||
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
+ | <poem> | ||
+ | कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं | ||
+ | सद शुक्र के अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं | ||
− | + | मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आयेँ जाँ दे आयेँ | |
− | + | दिल वालो कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं | |
− | + | जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है | |
− | + | ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं | |
− | + | मैदान-ए-वफ़ा दर्बार नहिओं याँ नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ | |
− | + | आशिक़ तो किसी का नाम नहीं कुछ इश्क़ किसी की ज़ात नहीं | |
− | + | गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा | |
− | + | ||
− | + | ||
− | गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा | + | |
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं | गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं | ||
+ | </poem> |
11:41, 12 नवम्बर 2010 का अवतरण
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
सद शुक्र के अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आयेँ जाँ दे आयेँ
दिल वालो कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं
जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं
मैदान-ए-वफ़ा दर्बार नहिओं याँ नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ
आशिक़ तो किसी का नाम नहीं कुछ इश्क़ किसी की ज़ात नहीं
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं