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"माँ / भाग ६ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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किसी को देख कर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
 
किसी को देख कर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
 
 
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्ते—सुल्तानी पलटता है  
 
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्ते—सुल्तानी पलटता है  
 
  
 
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
 
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
 
 
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है  
 
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है  
 
  
 
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
 
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
 
 
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है  
 
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है  
 
  
 
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
 
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
 
 
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा  
 
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा  
 
  
 
खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
 
खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
 
 
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती  
 
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती  
 
  
 
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
 
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
 
 
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है  
 
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है  
 
  
 
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीखती आँखें
 
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीखती आँखें
 
 
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था  
 
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था  
 
  
 
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
 
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
 
 
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है  
 
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है  
 
  
 
बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
 
बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
 
 
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले  
 
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले  
 
 
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
 
 
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
 
 
 
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
 
 
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
 
 
  
 
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
 
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
 
 
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
 
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
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17:29, 14 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

किसी को देख कर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्ते—सुल्तानी पलटता है

दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है

दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है

दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा

खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती

दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है

बहन का प्यार माँ की मामता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है

बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही