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"मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 
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:::(गीत)
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:कहा जो न, कहो !
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नित्य - नूतन, प्राण, अपने
 
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:::गान रच-रच दो!
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:विश्व सीमाहीन;
 
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बाँधती जातीं मुझे कर कर
 
बाँधती जातीं मुझे कर कर
व्यथा से दीन!
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व्यथा से दीन !
 
कह रही हो--"दुःख की विधि--
 
कह रही हो--"दुःख की विधि--
 
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
 
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
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:::किया जल का मीन;
 
:::किया जल का मीन;
 
मुक्त अम्बर गया, अब हो
 
मुक्त अम्बर गया, अब हो
:::जलधि-जीवन को!"
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:सकल साभिप्राय;
 
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समझ पाया था नहीं मैं,
 
समझ पाया था नहीं मैं,
:::थी तभी यह हाय!
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दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
 
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
 
आज प्याले गरल के घन;
 
आज प्याले गरल के घन;
 
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
 
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
:::पियो, प्रिय, निरुपाय!
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:::पियो, प्रिय, निरुपाय !
 
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
 
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
:::आई हुई, न डरो!"
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:::आई हुई, न डरो !"
 
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13:29, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण

कहा जो न, कहो !
नित्य - नूतन, प्राण, अपने
गान रच-रच दो !

विश्व सीमाहीन;
बाँधती जातीं मुझे कर कर
व्यथा से दीन !
कह रही हो--"दुःख की विधि--
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
विहग के वे पंख बदले,--
किया जल का मीन;
मुक्त अम्बर गया, अब हो
जलधि-जीवन को !"

सकल साभिप्राय;
समझ पाया था नहीं मैं,
थी तभी यह हाय !
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
आज प्याले गरल के घन;
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
पियो, प्रिय, निरुपाय !
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
आई हुई, न डरो !"