भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | |संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatNavgeet}} |
<poem> | <poem> | ||
− | + | :कहा जो न, कहो ! | |
− | :कहा जो न, कहो! | + | |
नित्य - नूतन, प्राण, अपने | नित्य - नूतन, प्राण, अपने | ||
− | :::गान रच-रच दो! | + | :::गान रच-रच दो ! |
+ | |||
:विश्व सीमाहीन; | :विश्व सीमाहीन; | ||
बाँधती जातीं मुझे कर कर | बाँधती जातीं मुझे कर कर | ||
− | व्यथा से दीन! | + | व्यथा से दीन ! |
कह रही हो--"दुःख की विधि-- | कह रही हो--"दुःख की विधि-- | ||
यह तुम्हें ला दी नई निधि, | यह तुम्हें ला दी नई निधि, | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
:::किया जल का मीन; | :::किया जल का मीन; | ||
मुक्त अम्बर गया, अब हो | मुक्त अम्बर गया, अब हो | ||
− | :::जलधि-जीवन को!" | + | :::जलधि-जीवन को !" |
+ | |||
:सकल साभिप्राय; | :सकल साभिप्राय; | ||
समझ पाया था नहीं मैं, | समझ पाया था नहीं मैं, | ||
− | :::थी तभी यह हाय! | + | :::थी तभी यह हाय ! |
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन, | दिये थे जो स्नेह-चुम्बन, | ||
आज प्याले गरल के घन; | आज प्याले गरल के घन; | ||
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय, | कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय, | ||
− | :::पियो, प्रिय, निरुपाय! | + | :::पियो, प्रिय, निरुपाय ! |
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में | मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में | ||
− | :::आई हुई, न डरो!" | + | :::आई हुई, न डरो !" |
</poem> | </poem> |
13:29, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण
कहा जो न, कहो !
नित्य - नूतन, प्राण, अपने
गान रच-रच दो !
विश्व सीमाहीन;
बाँधती जातीं मुझे कर कर
व्यथा से दीन !
कह रही हो--"दुःख की विधि--
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
विहग के वे पंख बदले,--
किया जल का मीन;
मुक्त अम्बर गया, अब हो
जलधि-जीवन को !"
सकल साभिप्राय;
समझ पाया था नहीं मैं,
थी तभी यह हाय !
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
आज प्याले गरल के घन;
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
पियो, प्रिय, निरुपाय !
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
आई हुई, न डरो !"