भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मरण-दृश्य / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
<poem>
 
<poem>
:कहा जो न, कहो !
+
कहा जो न, कहो !
 
नित्य - नूतन, प्राण, अपने
 
नित्य - नूतन, प्राण, अपने
:::गान रच-रच दो !
+
        गान रच-रच दो !
  
:विश्व सीमाहीन;
+
विश्व सीमाहीन;
 
बाँधती जातीं मुझे कर कर
 
बाँधती जातीं मुझे कर कर
व्यथा से दीन !
+
        व्यथा से दीन !
 
कह रही हो--"दुःख की विधि--
 
कह रही हो--"दुःख की विधि--
 
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
 
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
 
विहग के वे पंख बदले,--
 
विहग के वे पंख बदले,--
:::किया जल का मीन;
+
        किया जल का मीन;
 
मुक्त अम्बर गया, अब हो
 
मुक्त अम्बर गया, अब हो
:::जलधि-जीवन को !"
+
          जलधि-जीवन को !"
  
:सकल साभिप्राय;
+
सकल साभिप्राय;
 
समझ पाया था नहीं मैं,
 
समझ पाया था नहीं मैं,
:::थी तभी यह हाय !
+
          थी तभी यह हाय !
 
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
 
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
 
आज प्याले गरल के घन;
 
आज प्याले गरल के घन;
 
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
 
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
:::पियो, प्रिय, निरुपाय !
+
          पियो, प्रिय, निरुपाय !
 
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
 
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
:::आई हुई, न डरो !"
+
          आई हुई, न डरो !"
 
</poem>
 
</poem>

13:31, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण

कहा जो न, कहो !
नित्य - नूतन, प्राण, अपने
         गान रच-रच दो !

विश्व सीमाहीन;
बाँधती जातीं मुझे कर कर
         व्यथा से दीन !
कह रही हो--"दुःख की विधि--
यह तुम्हें ला दी नई निधि,
विहग के वे पंख बदले,--
         किया जल का मीन;
मुक्त अम्बर गया, अब हो
          जलधि-जीवन को !"

सकल साभिप्राय;
समझ पाया था नहीं मैं,
          थी तभी यह हाय !
दिये थे जो स्नेह-चुम्बन,
आज प्याले गरल के घन;
कह रही हो हँस--"पियो, प्रिय,
          पियो, प्रिय, निरुपाय !
मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में
          आई हुई, न डरो !"