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"अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे / अहमद कमाल 'परवाज़ी'" के अवतरणों में अंतर
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अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे, | अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे, | ||
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रात के पिछले पहर आती हैं आवाज़ें-सी, | रात के पिछले पहर आती हैं आवाज़ें-सी, |
06:41, 19 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
अजनबी ख़ौफ़ फ़िज़ाओं में बसा हो जैसे,
शहर का शहर ही आसेबज़दा हो जैसे,
रात के पिछले पहर आती हैं आवाज़ें-सी,
दूर सहरा में कोई चीख़ रहा हो जैसे,
दर-ओ-दीवार पे छाई है उदासी ऐसी
आज हर घर से जनाज़ा-सा उठा हो जैसे
मुस्कुराता हूँ पा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब- मगर
दुःख तो चेहरे की लकीरों पे सजा हो जैसे
अब अगर डूब गया भी तो मरूँगा न 'कमाल'
बहते पानी पे मेरा नाम लिखा हो जैसे