"सुबहे आज़ादी / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | रचनाकार | + | {{KKRachna |
− | + | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
ये दाग़-दाग़ उज़ाला, ये शब गज़ीदा सहर <br> | ये दाग़-दाग़ उज़ाला, ये शब गज़ीदा सहर <br> |
02:31, 30 अप्रैल 2008 का अवतरण
ये दाग़-दाग़ उज़ाला, ये शब गज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं
ये वो सहर तो नहीं कि जिसकी आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तारों की आखिरी मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज का साहिल
कहीं तो जाके रुकेगा सफ़ीना-ए-ग़म-ए-दिल
जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों में
चले जो यार तो दामन पे कितने दाग़ पड़े
पुकारती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुखे-सहर की लगन
बहुत करीं था हसीना-ए-नूर का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना, दबी-दबी थी थकन
सुना है हो भी चुका है फ़िराके ज़ुल्मत-ओ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाले-मंज़िल-ओ-गाम
बदल चुका है बहुत अहले दर्द का दस्तूर
निशाते-वस्ल हलाल-ओ-अज़ाबे-हिज़्र हराम
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन
किसी पे चारे हिज़्राँ का कुछ असर ही नहीं
कहाँ से आई निग़ारे-सबा किधर को गयी
अभी चिराग़े-सरे-रह को कुछ खबर ही नहीं
अभी गरानी-ए-शब में कमी नहीं आई
निज़ाते-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई