भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं तो बस्ती ढूढ़ रहा था मुझको मिले शमशान / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} {{KKCatGazal}} <poem> मैं तो बस्त…)
(कोई अंतर नहीं)

23:52, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण

रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal

मैं तो बस्ती ढूढ़ रहा था मुझको मिले शमशान बहुत
मेरे मालिक तेरे जहां में खेत है कम खलियान बहुत

हुस्न की दौलत वाले मुझको तेरी इक मुस्कान बहुत
कहने वाले सच कहते हैं मान का है इक पान बहुत

ज़िक्रे सियासत कल्लो गारत मंदिर मस्जिद धोखा-धडी
ऐसी ख़बरें सुनते सुनते पक गए अपने कान बहुत

इस दुनिया में जो जिंदा हैं वो तो भूखे नंगे हैं
जो मुर्दा हैं उनके लिए हैं जीने के सामान बहुत

तेरे दीवाने के अलावा कोई न समझा उसअते दिल
हर अरमान में इक दुनिया है और दिल में अरमान बहुत

अल्लाह रे दस्तूरे मोहब्बत कैसी कसी शर्ते हैं
इश्क की सौ कुर्बानियां कम हैं हुस्न का इक एहसान बहुत

कितना मज़ा आता था 'बेखुद' डूबने और उभरने में
आके किनारे राज़ खुला ये अच्छा था तूफ़ान बहुत